हद हो गई... लेकिन क्या करें कि इससे ज्यादा और इससे नीचे भी क्या गिरते हम. देखा नहीं उस लड़की को.. बेशरम कहीं कि, बेहया और उस पर खुले आम अपने आशिक के साथ घूम रही थी.. अब बताइये भइया ये ना करते तो क्या करते हम.. बस फाड़ डाले उस कुल्टा के कपड़े. अरे जब बेहयाई मन-तन से झलक रही हो तो फिर कपड़े से उसे ढांकने से क्या फायदा. आखिकार हम ठहरे समाज के ठेकेदार. ये असामाजिक हरकत कैसे बर्दाश्त करते. सो कर दिया जो करना चाहिए था. कैसे कोई दिनदहाड़े अपने आशिक के साथ सार्वजनिक स्थान पर घूम सकत है. अरे हम पूछ रहे हैं सड़क क्या उसके बाप की है. और हां, अब कोई कहे कि भई सरेआम लड़की के कपड़े फाड़कर हमने कौन सा फर्ज निभा लिया या फिर इससे समाज का क्या भला हो जाएगा.. तो हमें फर्क नहीं पड़ता और आगे भी हम यही करते रहेंगे.. और जरा हमें एक बात बताइये कि समाज का चौथा स्तंभ वो मुआं, नासपीटा रिपोर्टरवा भी वहां मौजूद था जिसने हमें और इस बेहया को कैमरे में कैद किया था. उसको कोई कुछ क्यों नहीं बोलता. उसने क्यों अपना फर्ज नहीं निभाया और पुलिस को बुला लिया. भई हम कहते हैं कि वो एक दिन टीआरपी की फिक्र छोड़कर किसी पुलिसवाले को फोन घुमा देता क्या जाता. फिर भइया सच तो ये है कि अपनी पुलिस एक बार बुलाने पर कहां टाइम पर आती है ससुरी जो अब आ जाएगी. आती भी हमें पता है साथ हमारा ही देती. भई उनके घर में भी तो बहू-बेटियां होंगी. वो ऐसे ही करेंगी तो जचेगा क्या?
हम हैं भीड़... बेलौस... बेलगाम... कोई रोक सके तो रोके... ये खुली चुनौती है दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र को हमारी...