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Friday, August 21, 2009

मीडिया को मोतियाबिंद

हां... देख तो पाता है लेकिन आंखों की ज्योति धुंधलाती जा रही है... हिन्दी मीडिया एक बिगड़ैल युवा बन गया है। युवा इसलिए क्योंकि आज तक भारत में मीडिया को शैशव काल में विस्तार और आकार लेता शिशु ही माना जाता रहा है। १०-१२ साल के बदलावों पर नज़र दौड़ाएं तो पाएंगे कि ये बच्चा अतिउत्साह में बिगड़ गया है। जो भावशून्य तो था ही अब देखने समझने की शक्ति भी खोता जा रहा है। बुधवार १०/०८/०९ दो बड़ी खबरें आईं... एक जसवंत सिंह के निजी विचारों से सजी किताब पर पार्टी से उनकी सियासी कुट्टी की और दूसरा देश में महंगाई और सूखा पर सरकार के बयान की। मीडिया ने सियासत की गर्मी तो टीवी स्क्रीन पर घंटों उतारा लेकिन अफसोस किसान और बेचारी जनता का महंगाई के डंक से ठंडा पड़ा जिस्म लावारिस ही छोड़ दिया। एक बिग ब्रेकिंग और एक शायद किसी किसी चैनल ने महज एक पैकेज महंगाई के नाम समर्पित कर दिया गया। दिन भर जसवंत के इन आउट को लेकर माहौल गर्माया रहा... जिस बात से देश के अन्नदाता को रत्तीभर भी फर्क नहीं पड़ता... उसी से टीवी स्क्रीन रंगे हुए थे। एक किसान, मजदूर को पेट और परिवार के सिवाय फुर्सत ही कहां है भला। क्यूं नहीं पूछा गया सरकार से कि कहां कई वादों की वो पोटली जो किसानों को सूखा राहत देने के लिए सरकारी कोष में सड़ रही है। आखिर कब तक किसान आसमां की तरफ सिर किए बादलों से मिन्नत करता रहेगा। क्यों सिंचाई के लिए किए जा रहे सरकारी प्रयास कामयाब होते नहीं दिख रहे हैं। मुंह चिढ़ाते आलू, टमाटर और आंख दिखाती सब्जीमंडी को बेचारा आम इंसान किस तरह से झेलता है उसका गैरतमंद मन ही जानता है। राजनेताओं का ये ड्रामा तो रोज की बात है... अतिवादिता का शिकार बीजेपी की विचारधारा को एक ना एक दिन बदलना ही पड़ेगा। लेकिन आखिर मीडिया क्यों अतिवादी बनता जा रहा है... इसे तो इंद्रधनुष की तरह दुख-सुख, गली-कूचों और जमीन आसमान से रंग चुरा कर परदे पर फैंकने चाहिए... डरती हूं कि अभी तो बस सियासी मोतियाबिंद का शिकार हुआ है मीडिया... जल्द ही कहीं हार्टअटैक ना आ जाए इसे....