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Wednesday, October 7, 2009

... और दिहाड़ी बढ़ गई

(इस लेख के सभी पात्र काल्पनिक हैं, किसी भी जीवित इंसान के साथ पात्रों की समानता महज़ संयोग होसकता है.... सुखद या दुखद, ये वो इंसान खुद ही तय करे )

....जैसे ही काम पर पहुंची, देखा कि वो लोग जो इधर उधर तफरी मारकर थोड़ा लेट पहुंचते हैं आज समय से पहले ही अवतरित हो गए थे... खुसुर-पुसुर चालू थी,
संजेश (सबसे लंबा लड़का है साइट पर) जोर-जोर से ताली पीटकर तेज़ आवाज में ठहाके लगा रहा था। बाकी की मंडली उसके ठहाकों पर दांत दिखा रही थी। सोचा क्या बातहै, सबकी बत्तीसी दिख रही है। इधर उधर नज़र दौडा़ई तो सज्ञा से नजरें चार हुईं, बोलीं अरे संचन, कैसी हो? मैने कहा ठीक हूं लेकिन यहां ये फव्वारे क्यों छूट रहे हैं? अपनी आदत के अनुसार सज्ञा पास आकर मुझे छूकर कान में बोली, यार सूत्रों से पता चला कि दिहाड़ी बढ़ने वाली है। खबर तो कई दिनों से सुन रही थी चलो आखिरकार ठेकेदार का मन पसीज ही गया, सोचा और कुछ नहीं तो कम से कम रायपुर की मुंह चिढ़ाती सब्जीमंडी से खाने की प्लेट पर सलाद तो सज ही सकता है...
इतने में सरमेंद्र जी गए, वही थोड़ा हैरान, परेशान लेकिन मुस्कुराते हुए बोले चलो थोड़े दिन और 'दिल्ली चलो' अभियान पर रोक लगाई जा सकती है। फिर दोनों हथिलियों से जोरदार ताली का पटाखा फोड़ते हुए पूछा
" कोई बता सकता है कि दिहाड़ी में कितना इजाफा होगा" तभी छुटकू सादिनाथ तपाक से बोला कर्म करो फल की चिंता काहे करते हो मानव। सरमेंद्र जी अपना सा मुंह बनाकर चुप हो गए। वहीं थोड़ी दूर हथेली पर तम्बाकू पर चूना रगड़ते हुए नौरव जी ये सब देख मन ही मन मुस्कुरा रहे थे। उनके बगल में ही खड़े सिसांत ने भारी अक्कखड़ आवाज में पूछा क्यों सर जी खुश तो बहुत होंगे आप आज। नौरव जी बोले काहे ना हों भाई, घर-परिवार है हमारा, पइसा तो बढ़ना ही चाहिए ना। सब कुछ ना कुछ फेंक रहे थे तो अपने संजीव जी के पेट में भी बुलबुले उठने शुरू हो गए, अपने चिर परिचित अंदाज में मुंह बनाकर बोले, और कछु होए के झन होए... ये बार मैं टूरी के ददा ल हौ कई देहंव... (पैसे बढ़ने के बाद मैं इस बार लड़की के बाप को हां जरूर कह दूंगा) अब तो मेरी हंसी छूट गई। तो पास खड़े जिराफ, अरे वही अपने सत्येंद्र जी बोले मइडम जी आप इस बार तो मिठाई जरूर खिलाएगा नहीं तो हम सीधे बिहार टपक पड़ेंगे मिठाई खाने। उन्ही के साथ काम करने वाली सुची बात बीच में ही काटकर बोल पड़ी हां हां, इतना कड़वा जो बोलते हैं, इनका तो मुंह मीठा होना ही चाहिए। लापरवाही से अंगड़ाई लेकर भौएं ताने सनहर बोला देखिए मैडम जी जान लगाकर काम में जुटा रहता हूं, तो पान बीड़ी के लिए पइसा तो बढ़ना चाहिए ही ना.... भाई लोगों की खुशी में पता ही नहीं चला कि शाम के पांच कब बज गए। सब काम में जुटे थे कि अचानक कोई जोर से चिल्लाया लो बढ़ गई दिहाड़ी। लो कर लो बात... नजरें उठाईं तो सब सन्न थे। सभी एक दूसरे के चेहरे पर नजरें गढ़ाए प्रतिक्रिया जानने की चाह में थे। सजीत ने सुर्री छोड़ी, भई ये तो महंगाई में मजाक हो गया। तो कोई बोला आज ही नई तिजोरी खरीद लाऊंगा, आखिर इतना पैसा रखूंगा कहां। किसी ने चुप रहना ही बेहतर समझा। बोलते भी कैसे, प्यार से भिगोकर जो धर दिया था मुंह पर... फकत पांच रुपए बढ़ी दिहाड़ी हमारी....