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Monday, November 9, 2009

...सुनो लोगों

हां, और नहीं तो क्या, अब ये तो होना ही था... कलेजे में पड़ गई ना ठंडक, बचपन से पढ़ा होगा कि बोए पेड़ बबूल का तो आम कहां से होए... लेकिन अक्ल ही अगर घास चरने गई हो तो फैसले कैसे लिए जा सकते हैं. विधानसभा में अपनी आवाज बनाकर दबंगों और गुंड़ों को भेजेंगे तो वहां विकास की तान तो छिड़ेगी नहीं, हां अलबत्ता गालीगलौज के सुर जरूर बुलंद हो सकते हैं, जैसा कि आज हुआ... आपको ये बात समझ में आती नहीं या समझना नहीं चाहते. जिन लोगों ने आज मातृभाषा का अपमान किया, विधानसभा में खुलेआम गुंडागर्दी दिखाई, स्पीकर की बेइज्जती करने के आम हो चुके नजारे को एक बार फिर दोहराया... मैं पूछती हूं कि उन्हें विधानसभा के गलियारों में पहुंचाया ही किसने... आपने ही ना॥ पहले से ही राज ठाकरे ने क्षेत्रियता की तुच्छ राजनीति के सहारे पूर्वांचलवासियों को बहुत सताया, उनसे मारपीट तक की। महाराष्ट्र छोड़ने की धमकी तक दी। हां शायद, तब आपकी समझ में क्यों आएगा? शरीर पर जख्म खाने वाला आपका कोई अपना नहीं था ना। वो तो यूपी या बिहार के थे, आपसे आपका हक...आपकी नौकरी छीनने के लिए महाराष्ट्र आए थे। लेकिन ये क्यों नहीं समझ में आया आपकी कि जिस राजठाकरे ने 'राज' की खातिर अपने रिश्तेदारों से खिलाफ ही बगावत का बिगुल फूंक दिया था वो नीति में नहीं सिर्फ और सिर्फ 'राज' का भूखा है। जानते तो आप ये भी थे कि खुद बालठाकरे और राजठाकरे मूलत: महाराष्ट्र के नहीं है। अरे जो अपने राज्य, अपने कुनबे का ना हो सका वो आपका क्या होगा। और आखिर क्यों होगा? उसे मतलब सत्ता से सत्तासुख से। आपको अपने बारे में तो सोचना चाहिए। वो क्यों आपके मुद्दे सदन में उठाएंगे और जनाब वक्त ही कहां है उनके पास ऐसे फालतू के कामों के लिए। बड़ा मुद्दा तो ये बन जाता है कि शपथ मातृभाषा हिंदी में क्यों ली जा रही है. सड़क और बसों में तो हिंदी बोलने में युवा पीढ़ी को शर्म आती ही है और अब तो औपचारिकता के लिए भी हिंदी बर्दाश्त नहीं हो रही है इन कपूतों। दोष इनका नहीं है दोषी आप हैं जिन्होने ऐसे गुंडों को चुनकर सदन में। सिर्फ एमएनएस की ही बात नहीं, मैं बात कर रही हूं संसद में बैठे तमाम गुनाहगारों की जो सत्ता की आड़ में शक्ति के मद में चूर बैठे हैं। वो बेवकूफ बनाते रहे और आप बनते रहे। अरे इस देश के पहले ही दो फाड़ हो चुके हैं। आज तक उस चोट का जख्म रिस रहा है और अब राज्य, क्षेत्र, मजहब और जाति की राजनीति की रोटियां सेक रहे नेताओं का जमाना है। शर्म बेचकर खा चुके ये गुंडे सदन या संसद में सिर्फ शोर मचाने के लिए जाते हैं। सदन में सत्र के पहले दिन उन्होने अपनी मंशा जाहिर कर दी। शर्म की बात ये तो भी है कि आज ही के दिन बर्लिन की मजबूत दीवार गिराकर जर्मनी को एकसूत्र में बांधने की पहल हुई थी और आज ही के दिन हिंदी-मराठी के नाम पर देश के टुकड़े करने की साजिश रची गई।
सुनिए और समझिए.... इस धरती के टुकड़े-टुकड़े होने से पहले जाग जाइए नहीं तो...