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Saturday, July 31, 2010

अफसोस है...

जख़्म गहरा है
चोट अपनों ने की
दिल छलनी हुआ
पर आंखों में पानी नहीं
पीड़ा बनी अवसाद
जमा होती रही
पता ही नहीं चला
और फिर एक दिन
विश्वास टूट गया
टूट गया जब
तब अहसास हुआ
कि रेत से बना मेरा
घरौंदा बिखर चुका
सपनों के मोती
यहां, वहां पड़े हैं
कौन समेटे अब कि
हिम्मत टूट गई
जख़्म गहरा है, बहुत गहरा

Wednesday, July 7, 2010

ससुरी महंगाई और हमार भौजी

सखी सइंया तो खूब ही कमात है
महंगाई डायन खाए जात है
अपने आमिर भाई की नई फिल्म का गाना है... भई गाना सुनके हम तो हो गए चित। कमाल है भइया। वैसे कमाल तो हमारी गली में रहने वाली भौजी भी है। हमारे साथ भौजी ने भी ये गाना सुना। अजी गाना क्या सुना, भौजी के दिल को छू गया। बस हर दूसरे भजन कीर्तन के समापन पर यही गाना गाया जाता है। नहीं नहीं मैं आमिर की नई फिल्म की डिस्ट्रिब्यूटर नहीं हूं, मैं तो आपको वो कमाल का वाकया सुनाने जा रही हूं जो इस गाने से जु़ड़ा हुआ है। अब हुआ यूं कि कल भौजी ढोलक की थाप पर जब महंगाई डायन को कोस रही थीं तो अचानक दरवाजे पर खूब सजी संवरी कड़क सूती साड़ी में एक महिला आकर खड़ी हो गई। वो कौन है क्या काम है भौजी समेत सभी औरतें ये तो बाद में पूछतीं, पहले तो नजर उसकी साड़ी, उसकी महंगे कीमती गहने और उसके पर्स पर जाकर टंग गईं। उनके मुंह खोलने से पहले ही वो औरत चिल्लाने लगी
- मैं कहती हूं किसने कहा मुझे डायन. किसकी इतनी हिम्मत हुई। अभी तो मेरे एक वार से सिर्फ कमर ही टूटी है ज्यादा चूं-चपड़ की ना तो हमेशा के लिए बिस्तर पर बिठा दूंगी... महंगाई है मेरा नाम हां...
भौजी की प्यासी नजरों ने जब मन भर कीमती गहनों और कपड़ों का स्वाद चख लिया तो होश आया। वो भी गुर्राने लगी

- अच्छा तो मुई तू है वो महंगाई। तभी मैं कहूं इस जमाने में इतने कीमती गहने और ये सजीला पर्स कहां तो आया। पहले से ही मुसीबतें कम थीं जो ससुरी तू भी आ गई जान खाने को।

महंगाई - क्या... मुझे गाली दी। तुम्हारी इतनी हिम्मत। अब देखो जरा डीजल, पैट्रोल तो पहले ही तुम फटीचरों की जेब से दूर चला गया है अब पानी, बिजली को भी तरसोगे तुम।

भौजी- अरे जा जा तेरी इतनी औकात कहां। ये तो भला हो दिल्ली सरकार का जिसने सब्सिडी हटाकर पानी बिजली हम गरीबों के लिए महंगी कर दी वरना इसका श्रेय भी तुझ डायन को ही जाता। और तू क्या हमको मसलेगी री, पहले तो घर से निकलते ही मोहल्ले के बेरोजगार लड़के ही जेब पर हाथ साफ कर देते हैं। या फिर सड़क पर चलते हुए तरह तरह के मजहबी विस्फोट से कब घर का कमाईदार चल बसे कुछ ठीक नहीं। ससुरी किस्मत अच्छी हुई और आदमी बच जाए तो जगह-जगह खुदी सड़कों और गड्डों से कइसे बचेगा। और गर किस्मत में ही छेद हो और जिंदगी बची रहे तो रहा सहा तेल तो इश्क का भूत ही उतार देत है। कर के देख लो जरा मां-बाप की मरजी से प्यार महोब्बत बस जान खुंखरी पर समझो। ई सब से कोई बच जाए तो हम रामदुलारी के घर महरी बन जाएं कसम से। तुम्हारा नंबर तो ए सब के बाद आवत रहै समझी. और ऊ भी तब जब कि हम सब महोल्ले की औरतें शीला बहन के घर रात को टीवी पर नाटक ना देख लें। कसम से ससुरा इतना रुलात है इतना रुलात है कि कौनो और चीज सोचने का मन ही ना करे। बाकी रहा सहा तुम मसल लो मौज से।

महंगाई- साला किस्मत से ही खोटी हो तुम सब। तुमको क्या लूटा जाए। लुटे लुटाए हो। बजाओ यार, बजाओ... आज मैं भी झूमके नाचूंगी। तुम सब की बर्बादी पर।
और फिर क्या... भौजी के ही मुंह से सुना वो डायन महंगाई ढोल की थाप पर खूब जमके नाची। और जाने कैसे लेकिन नाचते नाचते उसका आकार लगातार बढ़ रहा था।