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Wednesday, March 4, 2009

फुहार

आपने कुछ सुना... रुकिए... देखिए और महसूस कीजिए... पहली फुहार... टप-टप बरसती बूंदें और नहा गई सृष्टि। बादलों का राग सुनिए, बूंदों का साज सुनिए, हवा की सनसन सुनिए और सुनिए पंछियों का शोर।
भागती-दौड़ती जिंदगी में फुरसत के दो पल बटोरकर मासूम भीगी प्रकृति को कभी मन की आंखों से छूकर देखा है आपने। बड़े-बड़े कांच के शीशों से बस एक बार हाथ बाहर निकालकर बादलों की गोद से टूटकर बिखरी इन बूंदों को छुआ है आपने... जरूर सोचेंगे आप कि जिंदगी में इतना वक्त ही किसके पास है। लेकिन यकीन मानिए प्रकृति के करीब जाकर आप खुद के नजदीक पहुंच जाते हैं। कल भी, आज भी और कभी ना खत्म होने वाली प्रकृति का ये जादू आपकी परेशानियों को हल्का करके ताकत रखता है। साज, संस्कृति और संगीत के धनी इस देश में अगर आप निश्छल, मीठा और रागों से छलकता संगीत सुनना चाहते हैं तो जाइए... प्रकृति से जाकर मिलिए... उसका साक्षात्कार करिए, तभी आप आध्यात्म के चरम को भी छू सकते हैं। प्राकृतिक संगीत में नवजात की किलकारी के सुर भी हैं तो मां की ममता का ताल भी। विचलित, दुखी और परेशान मन एफएम के धमधम बजते शोर शोर में खोकर जिन सवालों के जवाब ढूंढता है वो सभी प्रकृति की गोद में आकर शांत हो जाते हैं।
बस एक बार, एक कोशिश और आप पल भर के लिए ही सही सभी दुखों से उठकर शान्ति पाने में सफल हो सकेंगे।