
मां, खुद में परिपूर्ण है ये शब्द। इस शब्द को सुनकर ही मन में आस्था, प्यार और ममता एक साथ हिलोरे लेने लगते हैं। शादी से पहले मेरे लिए मां सिर्फ और सिर्फ जन्म देने वाली कोख का ही नाम था। क्या करूं कि समझ ही इतनी थी। लेकिन विवाह के परिणय सूत्र में बंधने के बाद मस्तिष्क कुछ और खुला। रिश्तों के मायने कुछ और समझ आने लगे। मन की गांठ ढीली पड़ने लगी और मां शब्द का सही अर्थ समझने लगी मैं। शादी के बाद अपना घर परिवार रिश्ते-नाते छोड़कर एक बिल्कुल नए परिवेश में जाकर समाना इतना आसान नहीं होता। लेकिन वहां(मेरे ससुराल में) भी मुझे एक मां मिली। बहुत प्यार करने वाली और मेरा बहुत ख्याल रखने वाली, मेरी सासू मां। आज मेरे लिए मां महज जन्म देने वाली नहीं बल्कि ममता का दूसरा नाम ही मां है। मेरी सासू मां की तबीयत बहुत खराब है, उनका शरीर भी धीरे-धीरे ढलने लगा है। जीवन को समझने का एक नया नजरिया जिसने मुझे दिया वो आज खुद जीवन से हार मान बैठी हैं। सिर्फ उनके जरिए मैने जाना कि आखिर कैसे पराये अपने हो जाते हैं। आखिर क्यों उनके दुख से आपकी आंखे भर आती हैं। मेरी सासू मां ने बहुत कम समय में ही मुझे वो सब कुछ सिखाया जो ताउम्र जीवन को सुगम और सफल बनाने में मेरी मदद करेगा। और सबसे बड़ी चीज जो उन्होने मुझे सिखाई वो है संवेदनशीलता और सब्र, जो परिवार को चलाने के लिए एक बड़ी पूंजी है। बहुत बीमार होने के बावजूद आज भी वो जब लड़खड़ाती जुबान से मुझसे पूछती हैं कि कंचन खाना खाया क्या... बस आंखें नम हो जाती हैं। मां आप जल्दी से ठीक हो जाएं बस ईश्वर से यही एक चीज मांगती हूं...