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Sunday, June 5, 2011

अगुवाई की छवि से बाहर निकलो

शनिवार की रात दिल्ली के रामलीला मैदान में जो कुछ हुआ उसे देखकर तो सिर्फ यही कहा जा सकता है कि बेचारा सत्याग्रह, बेचारा आंदोलन और बेबस जनता। ना मुद्दा रहा, ना आंदोलन और डंडे पड़े सो अलग। और फिर मीडिया तो बाबामय हो ही गया है। मुहिम जाए भाड़ में। वैसे एक बात है भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में ऐसा होना कोई बड़ी बात नहीं। हां ऐसा नहीं होना जरूर चमत्कार कहा जा सकता है। इस घटना के बाद अब जरा आप मिस्र और भारत की तुलना कीजिए। भारत जैसा बड़ा विकासशील देश, करोड़ों की जनसंख्या से लदा और प्रगति के पथ पर अग्रसर इस देश के आगे मिस्र तो कहीं भी नहीं ठहरता। लेकिन उस देश में बिना किसी अगुवाई, बिना किसी नेता या बाबा के ऐसी ऐतिहासिक क्रांति हुई कि तहरीर चौक हमेशा के लिए अमर हो गया। तानाशाह सरकार के पांव उखाड़ने के लिए वहां एक साधारण सी लड़की ने मोबाइल पर मैसेज और वीडियो का सहारा लिया। बस फिर क्या था सारी जनता इस मुहिम में जान हथेली पर लेकर जुट गई। अब जरा लौट कर आते हैं भारत की सरजमीं पर। यहां हमें यानि जनता को किसी अन्ना या फिर किसी बाबा की अगुवाई की सख्त जरूरत महसूस होती है। हमारी ये जरूरत सत्ता खूब जानती है तभी तो जनहित में शुरू हुई कोई भी मुहिम राजनीति की कुटिल चालों की आसानी से शिकार हो जाती है। अन्ना हजारे की लोकपाल बिल मुहिम पर कभी सीडी कांड तो कभी सदस्यों के बीच असहमति की गाज गिरती ही रहती है। और फिर बाबा रामदेव का शुरू किया गया आंदोलन महाभारत की युद्धभूमि में बदल गया। मैं पूछती हूं आखिर मिला क्या। काला धन और भ्रष्टाचार मुद्दा तो हवा हो गया और तो और बाबा की जनहित मंशा पर भी सवालिया निशान लग गये हैं। इस सबसे नुकसान सिर्फ और सिर्फ भ्रष्टाचार की मुहिम को हुआ है। बाबा और सरकार के बीच गुपचुप या सार्वजनिक रूप से जो कुछ भी हुआ उसपर हमें और आपको शर्म आनी चाहिए। बाबा की जादुई छवि में भ्रष्टाचार आंदोलन का धुलना हमारी हार ही तो है। सत्ता तो स्वार्थी है ही, फिर बाबा भी अपनी छवि बढ़ाने के फेर में फंसते चले गए। वैसे वक्त अभी भी है। ये हमारी समस्या है। इसके लिए कोई बाबा क्यों अगुवाई करे। क्यों ना हम आप ही मिलकर इसे सफल बनाएं।