न उनको हमसे परेशानी
ना हमको उनसे शिकवा
बस बात नहीं होती अब
ना नजरों से ना जुबानी
ना खैर पूछते, ना बताते ही खता
कल, परसों फिर आज भी किया
रोजाना करते हैं रह रह कर हम
उनसे ख्वाबों में गिला
हम समझ नहीं पाते, ना वो कह पाते
कह पाते कि क्यों है हालात यूं ख़फ़ा
कहने को है ही क्या, जानते हैं माजरा सारा
कि आसार अच्छे नहीं, वहां भी यहां भी
दूर थे तो पास आने की थी बेकरारी
बेगानी सी लगती थी कायनात सारी
पर अब क्या ?
पास हैं तो...
नजदीकियां दम घोंटने लगी हैं