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Saturday, October 29, 2011

वो अनुभव...पहला पहला

जी हां, पता है कि बहुत दिन हो गए हैं लैपटॉप पर अंगुलियां नचाते हुए। बहुत पानी बह गया इन बीते दिनों में। बहुत कुछ बदल गया है; कुछ मेरे अंदर और बहुत कुछ मेरे आस-पास। हम दो से तीन हो गए। उसे अपने भीतर तो महसूस कर रही थी लेकिन सामने देखकर आंखें नम हो गईं। उसके नन्हे हाथों ने और कोमल अहसास ने सारे दुख भुला दिए। वो आया औऱ आते ही मुझे व्यस्त कर दिया। मेरी दुनिया को ढेर सारे रंगों से भर दिया। अब पता चला कि दुनिया की सबसे बड़ी खुशी क्या है। मुझे मेरे नाम से बढ़ाकर मां का दर्जा देकर उसने मुझे धन्य कर दिया। हर अनुभव पहला ही होता है लेकिन ये अनुभव हर मां को जीवन भर याद रहता है। मैंने अपने शरीर के इस हिस्से का नाम अंश रखा है। मुझे अहसास हो रहा है कि मुझ पर अब कितनी बड़ी जिम्मेदारी है। उसे एक अच्छा इंसान, एक जिम्मेदार नागरिक औऱ संवेदनशील प्राणी बनाने का भार मुझ पर है। बात सिर्फ इतनी है कि एक नन्ही जान को जन्म देना ही बड़ी बात क्या है, बात तो उसे अच्छे संस्कार देना और अपने आस पास की दुनिया के समझने की सही समझ देना है। जो सिर्फ हम कर सकते हैं। तो क्यों नहीं हम उन्हें परियों की कहानी सुनाने के बदले अन्ना का संघर्ष सुनाएं। उन्हें देश पर प्राण न्योच्छावर करने वाले वीरों के बारे में बताएं। क्यों ना उन्हें असलहों के बदले कलम के महत्व से रूबरू करवाएं। मैं तो ऐसा करने वाली हूं और आप सभी से भी ऐसा ही करने की आशा करती हूं.