Pages

Wednesday, December 30, 2009

कमाल का 'अवतार'


साफ... स्वच्छ... निश्चल और स्पष्ट 'अवतार'... जी हां, फिल्म के आइडिया की बात कर रही हूं। कई के दृष्टिकोणों से फिल्म जांचने के बाद सबसे पहला मूल्यांकन विचार का ही करूंगी। अवतार का आइडिया ही खुद में पवित्रता समेटे हुए है। एक आम दर्शक की नज़र से फिल्म देखने पर कुल मिलाकर सब कुछ अच्छा लगा। कह सकते हैं खूबसूरत आत्मा में पिरोई गई नग्न सुंदर काया वाली फिल्म है अवतार। ये फिल्म आपको प्रकृति के करीब ले जाएगी। क्रंकीट के जंगलों में खोए लगातार दौड़ने वाले खिलाड़ी को ये फिल्म... पैसे की दौड़ में पीछे छूट रही प्रकृति को देखने और महसूस करने की समझ देती है... बताती है कि छोटे से पेंडोरा को कोपेनहेगेन के राक्षसों से खतरा है जो अपनी ऊंची रखने की खातिर मासूम प्रकृति को अनदेखा कर रहे हैं। कुछ और बातें हैं जिन्होने खासतौर से मुझे आकर्षित किया। तन पर वस्त्र ना होते हुए भी नीली स्वच्छ काया वाले लोग अश्लील नहीं लगते। गाय सा मासूम चेहरा और पानी सा साफ मन। प्रकृति की ही तरह रहस्यमय खूबसूरती में लिपटे लोगों की तुलना कपड़ों वाले इंसान से करना बेकार है। फिल्म का एक पात्र पेंडोरा के लोगों को नीला बंदर कहकर बुलाता है। मन में आया कि ये नीले बंदर हमसे कितने अच्छे और समझदार हैं। लोग कहते हैं कि कम कपड़ों में लड़की अश्लील लगती है और काम वासना को आमंत्रित करती है। उन सभी बेअक्लों को मेरी सलाह है कि एक बार अवतार जरूर देखें। प्रकृति को प्रणाम करने की खातिर निर्देशक ने 1200 करोड़ जरूर फूंके, लेकिन शायद ये जरूरी था... बेहद जरूरी। और अब जरूरत है प्रकृति से फिल्म के पात्रों का जो रिश्ता है उसे समझने की। खुद में उतारने की।