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Sunday, July 20, 2008

जब हॉकी मेट क्रिकेट


कन ऑन ब्यॉज... वक अप... वक अप... कैच इट... गुड थ्रो... अरे अरे धप्पाक। ओह डोन्ट यू हैव आइज देहाती गंवार। हू आर यू…? \
माफ करना भैया... नमस्कार, हम हॉकी हैं।
ओह तो तुम हो वो झुके डंडे वाला एक फेल गेम। कहो क्या हाल चाल है। लेकिन पहले ये बताओ इस आलीशान क्रिकेट स्टेडियम में ये धोती कुर्ता पहने तुम कहां घुसे आ रहे हो? तुम्हें गार्ड्स ने रोका नहीं? अरे भैया नाराज क्यों होते हो, वो क्या है ना कि हम बड़ी मुश्किल से नजर बचाकर यहां तक पहुंचे हैं। हम देखना चाहते थे कि मेरा हिन्दुस्तान जिस क्रिकेट के पीछे पगलाया जा रहा है आखिर उस बला में ऐसा क्या खास है जो राष्ट्रीय खेल होते हुए भी मुझ में नहीं है।
ओह तो तुम देखना चाहते हो कि खेलों में मैं(क्रिकेट) नंबर एक की गद्दी पर कैसे पहुंचा। वैरी सिंपल मेरे पास आज पैसा है मीडिया है... सरकार है नेता हैं.. अभिनेता हैं और वो अब तो अमेरिका से इंपोर्टेड बारह गोरी छोरियां भी हैं। और तुम्हारे पास क्या है—हांय...
मेरे पास... मेरे पास ... वो.. वो.. हां मेरे पास खेल है जज्बा है।
अरे जाओ बड़े आए..जज्बा वाले। ये जज्बा जरूर सेंटियागो की हरी घास पर फिसल गया होगा जहां से तुम्हारे लड़के अस्सी सालों में पहली बार सिर झुकाए वापस लौटे थे। अरे ओलंपिक बिरादरी में देश की नाक ही कटवा दी तुमने। वैसे भी सिर्फ खेल और सो कॉल्ड जज्बे से नाम और पैसा नहीं कमाया जा सकता। मैं क्रिकेट हूं, तुमने मेरा ये कोट देखा है... स्पेशल अमेरिका से मंगवाया है और इसकी मैचिंग पैंट वो मशहूर डिजाइनर सव्यसाची से सिलवाई गई है। मेरे लड़कों को फैशन शो में रैंप पर इठलाते हुए तो देखा ही होगा तुमने। ऑफ्टर ऑल इट्स जैन्टलमैन्स गेम।
वो सब तो ठीक है भाई... लेकिन जब तुम्हारे लड़के मैदान में मां बहन की गाली दूसरे देश के खिलाड़ियों को देते हैं तब तुम्हारा ये जैन्टलमैन्स गेम किस मुंह से सिर उठाता है। ओह वो तो ... वो तो आक्रामक क्रिकेट की एक बानगी भर है। सुना नहीं तुमने क्रिकेट अब आक्रामक खेल हो गया है। मेरे लड़के मैदान में गालियां और मारपीट नहीं करेंगे तो मीडिया की कवरेज कैसे मिलेगी। वैसे भी ये देश की शान का मामला है। अरे वाह भाई,अपने ही देश के तीसमार खानों को भुलाकर विदेशी कोच के हाथ पैर पकड़कर उसे बुलाना और अपने ही लड़कों की सरेआम बोली लगाने से देश की शान पर बट्टा नहीं लगता क्या? उफ्फ रहोगे ना तुम गंवार के गंवार। इट्स ए पार्ट ऑफ स्ट्रैटजी यार। विदेशी कोच को यहां खेल की चाही अनचाही नीतियों से दबाना जरा आसान होता है। और रही बात लड़कों को बेचने की तो इससे क्रिकेट ग्लोबल होता है। और ठीक ही कहा तुमने, हम करें भी तो क्या करें? हॉकी का बड़े से बड़ा मुकाबला जीतने पर भी मेरे लड़कों पर ना तो पैसे की बरसात ही होती है और ना ही मीडिया से उधारी की पहचान ही मिल पाती है। अच्छा राम- राम चलते हैं।

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