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Thursday, November 25, 2010

मां की याद में


... पहली बार महसूस हुआ कि तकनीक ने दुनिया कितनी बदल दी है। वेंटिलेटर की मदद से पता ही नहीं चलता कि आपके अपने ने कब संसार से विदा ले ली... कब आपको अलविदा कह दिया। वेंटिलेटर में डाली गई दवाओं के प्रभाव से वो अंत तक सांस लेती रहीं... लेती रहीं। मैं देखती रह गई और माजी ने मेरे सामने दम तोड़ दिया और मैं कुछ नहीं कर सकी। डॉक्टर ने बताया कि वो जा चुकी हैं। मैं सन्न रह गई। वो लम्हा कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनके साथ वो मेरी दुनिया भी ले गईं। मुझे बहू से बेटी बनाया उन्होने और अपनी बेटी को छोड़कर चलीं गईं वो। उसके बाद मुझे दुनिया की तमाम उन सच्चाईयों से रूबरू होना पड़ा जिनको देखकर, सुनकर मैं दुखी कम आश्चर्यचकित ज्यादा थी। माजी के जाने के बाद उनकी तेरहवीं के लिए मुझे बिहार अपने ससुराल जाना था। माजी के बिना घर सूना था, बहुत सूना। लेकिन जिस तरह से उनके जाने के तुरंत बाद आस-पड़ोस के लोगों, यहां तक कि अपनों ने जो व्यवहार किया वो बहुत अजीब था। सबकी आंखों में दुख कम एक अजीब सी बेचैनी देखी मैने। इंसान के जाने के बाद रीतिरिवाजों से घिरी दुनिया का आडंबर देखकर मन व्यथित हो उठा। पता नहीं किसने ये रिवाज बनाए जो जिंदा बचे सदस्यों को परेशान कर देते हैं। किसी चीज में मेरा बस नहीं था सो जो सबने कहा मैने किया। खैर, घर की मालकिन के जाने का दुख घर के हर कोने में था। हर खिड़की से झांकता मेरा अतीत मेरे वर्तमान पर हंसता नज़र आया। हर दीवार, हर बर्तन पर माजी की छाप थी। मुझे पहली बार अहसास हुआ कि माजी हमेशा जिंदा रहेंगी। हमारी यादों में, हमारी बातों में और उस अहसास में जो वो आखिरी वक्त में हमें देकर गईं। वो जहां भी हों, खुश और शांत रहें।

5 comments:

RAJNISH PARIHAR said...

wo hamesha aapke saath hi hai..yaadon me...

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

स्थूल में वे चली गयीं ....सूक्ष्म में वे सदा ही आपके साथ रहेंगी .......उनका प्यार.....उनकी सीखें ......बहुत कुछ है .....ज़ो वे छोड़कर गयी हैं आपके लिए ....उन्हें संजो के रखना होगा .....आपकी अपनी बहू जब आयेगी उसे सौंप देना माँ जी की अमानत......इसी तरह चलता रहेगा ये क्रम अनवरत .....
जहाँ तक रीति-रिवाजों की बात है .....जब शुरू की जाती हैं तब तो उनका कोई अर्थ होता है ....परिस्थितिजन्य हो सकती हैं वे ....पर परिस्थिति बदलते ही वे अर्थहीन हो जाती हैं.....तब वे रूढ़ हो जाती हैं ....केवल एक भार भर ...और शायद कुछ लोगों के लिए स्वार्थ का साधन भी.......
माँ के जाने से आप को कुछ समय निश्चित ही सूनापन लगेगा ...पर समय ही सबसे बड़ा मलहम है ....सारे घाव भर देगा ........आज की प्रार्थना .....माँ जी की आत्मा की शान्ति के लिए सर्व शक्तिमान से....

संजय भास्‍कर said...

सुकोमल अहसास .......... आभार .
पहली बार पढ़ रहा हूँ आपको और भविष्य में भी पढना चाहूँगा सो आपका फालोवर बन रहा हूँ ! शुभकामनायें

केवल राम said...

नमस्कार जी
जानकार दुःख तो हुआ परन्तु नियति यही है ..इसे स्वीकारना होगा ...और आगे बढ़कर जीवन जीना होगा ...हालाँकि इंसान की कमी को पूरा नहीं किया जा सकता ...पर क्या करें ..हाँ जो सांसारिक रीति रिवाजों की बात है वो अवश्य ही फजूल के हैं ..पर kya किया जा सकता है ....ईश्वर आपको होसला दे ..मेरी यही प्रार्थना है .....भविष्य के लिए शुभकामनायें

kaushal said...

कंचन मां की कमी तो कभी पूरी नहीं होगी, लेकिन उनकी अच्छाई और उनके व्यवहार, विचार को अपनाकर हम उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं। रही बात रिवाजों की तो अभी भी हमारा समाज रूढिवादिता के दलदल में फंसा है। हालांकि समाज में परंपराओं को समय मुताबिक बदलने की अकुलाहट भी है। परंपराओं का बदलाव शायद धीरे धीरे होता है। हो सकता है कुछ सालों में इन आडंबरों में कमी आएगी। मां के क्रिया कर्म के दौरान होने वाले आडंबरों का मैं विरोध नहीं कर पाया। क्या करता, विरोध करने पर पापा के मन को तकलीफ पहुंचती। पापा अभी भी परंपराओं में खूब भरोसा करते हैं। मेरे लिए उनके सुकुन से ज्यादा कुछ भी मायने नहीं रखता था।