न उनको हमसे परेशानी
ना हमको उनसे शिकवा
बस बात नहीं होती अब
ना नजरों से ना जुबानी
ना खैर पूछते, ना बताते ही खता
कल, परसों फिर आज भी किया
रोजाना करते हैं रह रह कर हम
उनसे ख्वाबों में गिला
हम समझ नहीं पाते, ना वो कह पाते
कह पाते कि क्यों है हालात यूं ख़फ़ा
कहने को है ही क्या, जानते हैं माजरा सारा
कि आसार अच्छे नहीं, वहां भी यहां भी
दूर थे तो पास आने की थी बेकरारी
बेगानी सी लगती थी कायनात सारी
पर अब क्या ?
पास हैं तो...
नजदीकियां दम घोंटने लगी हैं
4 comments:
नजदीकियां दम घोंटने लगी हैं....
क्या बात है! उम्दा
डा.अजीत
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बेहद उम्दा रचना है. कुछ लाइने मेरी जिंदगी से वास्ता रखती हैं. लिखती रहिये. बधाई
ना खैर पूछते, ना बताते ही खता
कल, परसों फिर आज भी किया
रोजाना करते हैं रह रह कर हम
jab o thee to mai bhi aise hi tha lekin jab se gayee hai bas samay ka pata hi nahi chalta. nice rachna
RA Singh
www.maibolunga.blogspot.com
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