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Wednesday, June 30, 2010

ये क्या हुआ ?

न उनको हमसे परेशानी
ना हमको उनसे शिकवा
बस बात नहीं होती अब
ना नजरों से ना जुबानी

ना खैर पूछते, ना बताते ही खता
कल, परसों फिर आज भी किया
रोजाना करते हैं रह रह कर हम
उनसे ख्वाबों में गिला
हम समझ नहीं पाते, ना वो कह पाते
कह पाते कि क्यों है हालात यूं ख़फ़ा
कहने को है ही क्या, जानते हैं माजरा सारा
कि आसार अच्छे नहीं, वहां भी यहां भी
दूर थे तो पास आने की थी बेकरारी
बेगानी सी लगती थी कायनात सारी
पर अब क्या ?
पास हैं तो...
नजदीकियां दम घोंटने लगी हैं

4 comments:

Dr.Ajit said...

नजदीकियां दम घोंटने लगी हैं....
क्या बात है! उम्दा

डा.अजीत
www.shesh-fir.blogspot.com
www.monkvibes.blogspot.com

Unknown said...

बेहद उम्दा रचना है. कुछ लाइने मेरी जिंदगी से वास्ता रखती हैं. लिखती रहिये. बधाई

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Unknown said...

ना खैर पूछते, ना बताते ही खता
कल, परसों फिर आज भी किया
रोजाना करते हैं रह रह कर हम
jab o thee to mai bhi aise hi tha lekin jab se gayee hai bas samay ka pata hi nahi chalta. nice rachna

RA Singh
www.maibolunga.blogspot.com