जख़्म गहरा है
चोट अपनों ने की
दिल छलनी हुआ
पर आंखों में पानी नहीं
पीड़ा बनी अवसाद
जमा होती रही
पता ही नहीं चला
और फिर एक दिन
विश्वास टूट गया
टूट गया जब
तब अहसास हुआ
कि रेत से बना मेरा
घरौंदा बिखर चुका
सपनों के मोती
यहां, वहां पड़े हैं
कौन समेटे अब कि
हिम्मत टूट गई
जख़्म गहरा है, बहुत गहरा
2 comments:
bahut sundar prastuti......
बढ़िया लिखतीं हैं....
लेकिन एक बात सच है कि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत....
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